माँ हो तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर।
ये भी तुमको
मिला है हमसे ये हमारा आभार तुम पर।
फिर तुम
चैन की नींद सोयी थी जिस रात दिल्ली दहली थी,
और देख अपनी
अंशिका को एक माँ चीख-चीख के रोई थी।
हमारी ही ताकत
का ये कैसा प्रहार है हम पर ,
माँ हो
तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर।
जिस
देख की मुखिया महिला थी ,जिस देश की प्रधान भी महिला थी।
जिस
जगह का जिम्मा भी महिला था ,वंहा ये करतूत कोयला थी।
देश
जिसे हैम भारत माता कहकर शीश नवाते है,
उर
देश की बेटी महफूज़ नहीं है क्या ख़ाक ये अपना फ़र्ज़ निभाते हैं।
कभी
झकना उसकी आँखों में हज़ारों सपनो के ऊपर डर की नदिया होती है
उस
झाँसी की रानी कि देख आज भारत माता रोती है ,
किन
हाथों में हमने तकदीर थमा दी अपनी, तुमपर धिक्कार है
माँ हो
तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर।
रूह काँप उठती है ,सुन सुनकर किस्से ये हैवानियत के .
ढूँढती है ये आँखें ,कहाँ है फ़रिश्ते इंसानियत के .
आज यहाँ , कल वहां , और ना जाने कहाँ -कहाँ ये किस्से दोहराये जायेंगे .
ये होगा तब तक, जब तक दरिंदगी मिटाने वाली आग पर , कुछ लोग रोटियां पकाएंगे .
अरे ज़रा ख़ौफ़ तो रखो उस ख़ुदा का , क्या जबाव दोगे तुम वहां
और कैसे करोगे वो चीख़ती आवाज़ , वो काली करतूत , और उसपर तुम्हारे रवय्ये तुम वयां।
मत भूलो जो राज गद्दी मिली है तुमको वो हमारा उधार है तुमपर।
माँ हो तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर।
…………। नीतू राजपूत