Sunday 9 May 2021

उलझन

मैं तू और जिंदगी कुछ इस तरह उलझ गए हैं ,
कि कट जाऊं तो विसतार ख़तम|
थम जाऊं तो आधार ख़तम|
झुक जाऊं तो विचार ख़तम
और लड़ जाऊं तो आचार ख़तम||

                                -Neetu

Sunday 12 October 2014

हिमांचल ….



ये  प्रकृति  की  अनुपम  छटा  .
ये  सूरज  की  लालिमा  के  ऊपर  छायी  घटा .
ये  घटता  बादलों  का  सवालां   रंग .
और  ये  झींगुरों  की  धुन  एक  संग .
ये  कल - कल  छल - छल  बहते  पानी  का  सुर .
और  इन  सब  के  बीच  एक  प्यारी  सी  गुड़िया  रूहानी  का  घर .
यु  आड़  से  निकली  एक  सूरज  की  किरण .
बहती  हवाओं  की  ठंडी   सी  चुभन .
आसमां को  छूती पहाड़ों की  उचाई .
और  प्यारी  लालिमा  जो  पेड़ो  के  बीच  दुबके  घरों  पर  छायी .
और  ये  सूरज  का  आँख  मिचौली  खेलना .
यु  परिंदों  के  सुर  के साथ  मस्ती  में  घूमना .
ऊंची -नीची  राह  दिखाती डगर .
कहीं धुन  वो  पानी  की  कल  कही  झड़ता  झर- झर .
और  पहाड़ों  की गोद में  देवी  माँ  का  घर .
और  मंडराती  तितलियाँ  भजनो की धुन  पर .
और  यु  भोले - भाले चहरे .
उनपर  लम्बे - लम्बे  पेड़ों  के पहरे .
यहाँ  की  प्रकृति  का  ये  अनोखापन .
और  पत्थरों  पर निरंतर  बहते  पानी  की  लगन .
पता  नही  कहा  से  छन  कर  आया  ये  मीठा  पानी .
और  पतली  कमर  पर रखी कलसी  और  हवा  सुहानी .
सूरज  को  अपने  आँचल  छिपाती  गिरियों  की  गहराई .
और  अब  है  हर  पर्वत  चाँद  की  चांदनी  छायी .
हर  पर्वत  ने  ओढ़ी  है  चुनार  चांदनी  की .
लगता  है  जैसे  घूँघट  में  छिपी  हो  सूरत  किसी  रानी  की .
जहाँ  की  बहती  हवाएँ  भी  हो  इतनी  चंचल .
ये  था  मेरी  आँखों  देखा  हिमो का  घर  हिमांचल .
                                                                                            ………नीतू  राजपूत

हमारी ताक़त




माँ  हो तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर। 
ये भी तुमको मिला है हमसे ये हमारा आभार तुम पर। 
फिर तुम चैन की नींद सोयी थी जिस रात दिल्ली दहली थी,
और देख अपनी अंशिका को एक माँ चीख-चीख के रोई थी। 
हमारी ही ताकत का ये कैसा प्रहार  है हम पर ,
माँ  हो तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर। 


जिस देख  की मुखिया महिला थी ,जिस देश की प्रधान भी महिला थी। 
जिस जगह का जिम्मा भी महिला  था ,वंहा ये करतूत कोयला थी। 
देश जिसे हैम भारत माता कहकर शीश नवाते है,
उर देश की बेटी महफूज़ नहीं है क्या ख़ाक ये अपना फ़र्ज़ निभाते हैं। 
कभी झकना उसकी आँखों में हज़ारों सपनो के ऊपर डर की नदिया होती है 
उस झाँसी की रानी कि देख आज भारत माता रोती है ,
किन हाथों में हमने तकदीर थमा दी अपनी, तुमपर धिक्कार है 
माँ  हो तुम भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर।


रूह  काँप उठती  है ,सुन  सुनकर  किस्से  ये  हैवानियत के .
ढूँढती  है  ये  आँखें ,कहाँ  है   फ़रिश्ते  इंसानियत  के .
आज  यहाँ , कल  वहां  , और  ना  जाने  कहाँ -कहाँ  ये  किस्से  दोहराये  जायेंगे .

ये  होगा  तब  तक, जब  तक  दरिंदगी  मिटाने वाली आग  पर , कुछ  लोग  रोटियां  पकाएंगे .

अरे  ज़रा ख़ौफ़  तो रखो  उस ख़ुदा  का , क्या  जबाव  दोगे  तुम  वहां
और  कैसे  करोगे  वो  चीख़ती आवाज़ , वो  काली  करतूत , और  उसपर तुम्हारे रवय्ये  तुम वयां। 
मत  भूलो  जो  राज गद्दी  मिली है  तुमको  वो  हमारा  उधार  है  तुमपर।
माँ  हो  तुम  भी पर अधिकारों का भंडार है तुम पर।
                                                      …………। नीतू राजपूत